बानी-ए-यतीमखाना के ख्वाब और मंसूबे
DRAEMS AND PLANS OF THE FOUNDER OF THE ORPHANAGE

बानी-ए-यतीमखाना ने एक सदी सौ (107) साल कबल जो ख्वाब देखा और सोच (THINK) रखा था वह चार (4) थे जिस के लिए वह बराबर फिक्रमंद और बेचैन रहा करते थे ।

  1. लड़कों का यतीमखाना (क़ायम करना).
  2. लड़कियों का यतीमखाना (क़ायम करना ).
  3. सनअती (INDUSTRIAL) तालीम (बच्चों को बा हुनर बनाना) यानी तालीम के साथ साथ हुनर की तालीम देना, मसलन बढ़ई, लोहार, वगैरह का हुनर सिखाना.
  4. 1937 ई0 में पाँच बीघा जमीन पर एक अज़ीमुश्शान इमारत की तामीर का मंसूबा था, जिस में दो सौ (200) यतीम तलबा रह सकें और बैरूनी तलबा भी अपना खर्च दे कर होस्टल में रह सकें, और यतीमखाना का मिडिल स्कूल जल्द से जल्द यतीमखाना का हाई स्कूल बन जाए, फिर स्कूल से कॉलज हो जाए और कॉलेज फिर यतीमों की यूनिवर्सिटी (G.M.O. ORPHAN UNIVERSITY) बन जाए।

अलजवाब कौन-कौन से ख्वाब और कौन-कौन से मंसूबे पूरे हुए और और नहीं हुए। जे़ल में पढे़ं-.

  1. लड़कों का यतीमखाना उन्हों ने अक्तूबर 1917 ई0 में क़ायम कर दिया था ।
  2. लड़कियाें का यतीमखाना का ख्वाब 1938 ई0 और 1970 ई0 से कई साल कबल उन्हों ने पूरा करना चाहा था मगर ना हो सका था । जिस को क़ायम करने के लिए उन्हों ने अपनी एक बीघा (74 1/2 डिसिमिल) जमीन भी वक़्फ की थी मगर कोई इस काम को करने के लिए तैयार नहीं हुआ था। उन का यह ख्वाब उनकी वफात के बाद ही उन के बड़े पोते इकबाल अहमद ख़ान साहब कोलौना ने 21 दिसम्बर 1986 ई0 को उन के आबाई गाँव कोलौना में (लड़कियों का यतीमखाना) की बुनियाद डाली थी।
  3. सनअती (INDUSTRIAL) तालीम (हुनर की तालीम) का मंसूबा बानी-ए-यतीमखाना ने 1941 ई0 के क़बल ही से शुरू करने की बहुत कोशिश की थी । मगर वह इस में कामयाब नहीं हो सके थे । हाँ उन की ज़िन्दगी ही में इब्तदा हो गई थी मगर 2018 ई0 से इनायत (I.T.I.) ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट की दो मंज़िला इमारत में बाज़ाबता दो ट्रेड (2 TRADES) की तालीम शरू हो गई है । उनकी वफात के बाद यह ख्वाब भी मुकम्मल हो गया ।
  4. (क) अज़ीमुश्शान इमारत मअ आलीशान मस्जिद के साथ मौजूद है । मगर आज तक दो सौ (200) यतीम तलबा की तादाद मुकम्म्ल नहीं हो सकी है ।
    (ख) बानी-ए-यतीमखाना ने 1939 ई0 से ही बैरूनी गैर यतीम तलबा के क़याम के मंसूबा को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया था जिस की इब्तदा भी हो गई थी बैरूनी तलबा अपना खर्च दे कर तालीम हासिल करने लगे थे। मगर बाज़ाबता अल्लामा इक़बाल होस्टल की दो मंजिला इमारत की तामीर 1985 ई0 के बाद और बानी-ए-यतीमखाना की वफात के बहुत बाद शुरू हुई थी ।
    (ग) मिडिल स्कूल से हाई स्कूल उनकी वफात के बाद बना और स्कूल को (10+2) कराने के लिए कोशिशें जारी हैं और कॉलेज बन जाने के बाद "यतीमों की यूनिवर्सिटी" ( G.M.O. ORPHAN UNIVERSITY) बनाने का काम भी इंशाल्लाह शरू होगा ।

याद रखें यह अदारह हर शोबा ए जिन्दगी पर मुहीत है और तरक्की की तरफ रवाँ दवाँ है जो बानी-ए- यतीमखाना के हर ख्वाब को पूरा करता दिखाई दे रहा है। आज से सौ (107) साल कबल बानी-ए-यतीमखाना ने जो बीज बोया था आज वह फलदार दरख्त की शक्ल में खड़ा हो गया है । अल्लाह तआला बानी के ख्वाब और मंसूबे को पूरा करने में मदद फरमाए ।
बानी-ए-यतीमखाना के बाक़ी सारे छुटे हुवे ख्वाबाें और मंसूबों को इंशल्लाह जल्द पूरा किया जाएगा । जो उन की ज़िन्दगी में पूरा नहीं हो सका था । अल्लाह हामी व नासिर और निगहबान है ।

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