क़ुरआन का एलान
(THE HOLY QUR'AN SAYS.)

  • "तुम जो भी माल खर्च करो, उस में यतीमों का हिस्सा है"। (सूरहअनफाल)
  • दूसरी जगह है कि ’’अपनी पाक कमाई अल्लाह की राह में खर्च करो"।
  • कुरान शरीफ में है कि ’’जो लोग अपना माल खुदा की राह में खर्च करते हैं। उन के माल की मिसाल उस दाने की सी है जिस से सात (7) बालें उगें और हर एक बाल में सौ-सौ (100) दाने हों। और खुदा जिस के माल को चाहता है ज़्यादा करता है, वह बड़ी कशाएश वाला है"। (अलबकरह 261)
  • "अल्लाह की राह में खर्च करने में सात सौ (700) गुणा अज्र है! सवाब है"।

अहादीसे नबवी स0 (हुज़ूर स0 ने इरशाद फरमाया!)
( The Prophet says. )

  • "औलाद के लिए वालदैन का बेहतरीन अतिया सही तालीम ओ तरबीयत है"।
  • "इंसान को अपनी औलाद का अदब की एक बात सिखाना एक साअ (साढ़े तीन सेर) ग़ल्ला खैरात करने से बेहतर है"।
  • "यतीम की कफालत करने वाला और मैं जन्नत में इस तरह होंगे जिस तरह हाथ की दो उँगलियाँ इकट्ठी हैं"।
  • "जिस ने खुदा के लिए यतीम के सिर पे हाथ फेरा, उस यतीम के सिर के बाल के बदले उस के नामा-ए-एमाल में नेकी लिखी जाएगी"।
  • "हर बच्चा इस्लाम की फितरत पर पैदा होता है। उस के माँ बाप उसे यहूदी, ईसाई या आतिश परस्त बना देते हैं"।
  • "सदक़ा अल्लाह के ग़ज़ब को ठंडा कर देता है, और मौत की सख्ती को आसान कर देता है"।
  • "हदीस में है कि लड़के तुम्हारे हक़ में नेमतें हैं उन का शुक्र अदा करो और लड़कियों के बारे में कहा गया है कि यह तुम्हारी नेकियाँ है"।
    "गोया नेमत के उपर शुक्र वाजिब है। कुफ्राने नेमत करोगे तो सज़ा मिलेगी। गोया जितनी लड़कियँा उतनी ही नेकियाँ मिलेंगी। उतना ही अज्र मिलेगा"।
  • "यतीमों से मुहब्बत रखो और वह (हुज़ूर स0) तुम से गहरी मुहब्बत रखेंगे। चुँकि रसूले करीम स0 खुद भी एक यतीम थे"
  • "हदीस के मुताबिक मखलूक़ की खिदमत ही खालिक (अल्लाह) की खिदमत है"।
  • "दूसरी हदीस ’’मखलूक सारी की सारी अल्लाह का कुँम्बा है"।
  • "वह शख्स मोमिन नहीं जो खुद पेट भर कर खा ले और उस का पड़ोसी, उस के पहलू में भूखा रहे"। (हदीस) "।
  • "हदीस में है कि "किसी की नमाज़ की तरफ मत देखो, और न किसी के रोज़े की तरफ देखो, बल्कि यह देखो कि जब वह बात करता है तो सच बोलता है, जब अमीन बनाया जाता है तो अमानत अदा करता है, और जब दुनिया में मुबतला होता है तो परहेज़गार रहता है। "।
  • "हुज़ूर स0 ने इरशाद फरमाया "ज़िन्दगी में एक दिरहम खैरात करना उस से बेहतर है कि मरने के बाद कोई तेरे लिए सौ (100) दिरहम खैरात करे। "।
  • "जब इंसान मर जाता है तो उस के सारे अमल खत्म हो जाते हैं। मगर तीन (3) क़िस्म के आमाल बाकी रह जाते हैं"।
  1. सदक़ा-ए-जारिया व सदक़ा खैरात की ऐसी आम शकल जिस से लोग तवील अरसे तक फायदा उठाते रहें।
  2. ऐसा इल्म जिस से फायदा उठाया जाता रहे।
  3. ऐसी नेक औलाद जो उस के लिए दुआ करती रहे।


याद रखें:- (हदीस )में है की "बेवाओं और यतीमों की ख़बरगीरी करने पर बहुत बड़े अज्र-ओ-सवाब की बशारत दी गई है और उस अज्र को बढ़ा कर (जिहाद)करने वाले और (हज) करने वालो के बराबर कर दिया गया है और साएमुद्दहर (हमेशा रोज़ा रखने वाला) बताया गया है।" (बुखारी व मुस्लिम)

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